वायुमण्डल एवं उसकी परतें :-
वायुमण्डल एक बहुस्तरीय गंधहीन, रंगहीन पारदर्शी गैसीय आवरण है, जो पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए है। यह सौर विकरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी हैं, जबकि पार्थिव विकरण की लम्बी तरंगों के लिए अपारदर्शी है । इस प्रकार वायुमण्डल पृथ्वी पर औसत तापमान बनाए रखता है, जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है । वायुमण्डल पृथ्वी से उसके गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा सम्बद्ध है, जो पृथ्वी की सतह से 10,000 किमी की ऊँचाई तक पाया जाता है । वायुमण्डल सौर विकिरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी, जबकि पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों के लिए अपारदर्शी होता है, इस कारण यह ग्लास हाऊस की भांति कार्य करता है । वायुमण्डल पर जीवन योग्यग औसत तापमान (15°C) बनाए रखता है।
वायुमण्डल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली परतों का बना हुआ है, जिसका विस्तार 10,000 किमी की ऊँचाई तक मिलता है । तापमान की स्थिति तथा अन्य विशेषताओं के आधार पर इसे 05 विभिन्न स्तरों में बांटा गया है।
- क्षोभमण्डल (Troposphere) :- यह वायुमण्डल का सबसे निचला स्तर है, जिसकी ऊँचाई सतह से लगभग 13 किमी तक पाई जाती है, किन्तु ध्रुवों पर यह 8 किमी को ऊँचाई तक ही स्थित है । समस्त मौसमी परिवर्तन इसी मण्डल में होते हैं।क्षोभमण्डल की मोटाई विषुवत रेखा पर सबसे अधिक है । क्योंकि यहां पर उच्च तापमान के कारण वायु का तीव्रता से संवहन किया जाता है । उल्लेखनीय है कि इस संस्तर में प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 1°C घटता जाता है । इसी ताप को सामान्य ह्रास दर कहा जाता है । क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा पर ही अत्यधिक तीव्र गति से चलने वाली पवनों को जेट पवन (Jet stream) कहा जाता है।
- समतापमण्डल (Stratosphere) :- क्षोभमण्डल से ऊपर 50 किमी की ऊँचाई तक समतापमण्डल का विस्तार हें । चूंकि इस मण्डल के निचले भाग मे 20 किमी की ऊँचाई तक तापमान में कोई परिवर्तन नहीं होता, इसलिए इसे समतापमण्डल कहा जाता है । समतापमण्डल की ऊपरी सीमा को स्ट्रैटोपाज़ कहते हैं । इस मण्डल की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ओजोन परत की उपस्थिति है, जिसका विस्तार 15 से 35 किमी की ऊँचाई तक पाया जाता है । समताप मण्डल के निचले भाग में , स्थित ओजोन परत पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है । यह मण्डल मौसमी घटनाओं से मुक्त होता है, इसलिए वायुयान चालकों के लिए यह उत्तम मण्डल है । इस मण्डल से तापमान धोरे-धोरे ऊँचाई की और बढ़ने लगता है।
- मध्यमण्डल (Mesosphere) :- 50 से 80 किमी ऊँचाई वाला वायुमण्डलीय भाग मध्यमण्डल कहलाता है । इसमें तापमान में अचानक गिरावट आती है, जो वायुमण्डल का न्यूनतम तापमान होता है । इस न्यूनतम तापमान की सीमा को मेसोपाज (Mesopause) कहते हैं, जिसके ऊपर जाने पर तापमान में पुन: वृद्धि होती है।
- आयनमण्डल (Ionosphere) :- धरातल से इसको ऊँचाई 80 से 640 किमी के मध्य है । इस मण्डल में विस्मयकारी विद्युतीय एवं चुम्बकीय घटनाएं होती रहती हैं, क्योंकि इस मण्डल में विद्युत आवेषित कणों की अधिकता होती है। ब्रह्माण्ड किरणों का परिलक्षण इसी मण्डल में होता है । वायुमण्डल की इसी परत से विभिन्न आवृत्तियों की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं । इसी आधार पर आयनमण्डल कई परतों मे बंटा हुआ है, जो निम्नलिखित हैं -
- D- Layer :- यह आयनमण्डल की सबसे निचली परत है, जिससे रेडियो की लम्बी एवं निम्न आवृत्ति की तरंगों का परावर्तन होता हैं।
- E- Layer :- इस परत से रेडियो की मध्य आवृत्ति की तरंगों का परावर्तन होता है । इसी परत में उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) के दर्शन होते हैं।
- F- Layer :-E- परत के ऊपर F-परत (F- Layer) का विस्तार होता है, जिससे रेडियो की लघु तरंगें परावर्तित होती हैं।
- G- Layer :- यह आयन मण्डल की सबसे ऊपरी परत होती है, जिससे सभी प्रकार ( निम्न, मध्यम, उच्च ) की रेडियो तरंगें परावर्तित होती है।
- बाह्यमण्डल (Exosphere) :- आयनमण्डल के ऊपर वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत बाह्यमण्डल कहलाती है, जिसकी ऊँचाई 640 से 1000 किमी तक मानी जाती है । यहां की वायु में हाइड्रोजन व हीलियम गैसों की प्रधानता होती है । अद्यतन शोधों के अनुसार यहां नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम, हाइड्रोजन की अलग-अलग परतें विद्यमान रहती हैं । इस मण्डल मे 1000 किमी के बाद वायुमण्डल अत्यन्त विरल हो जाता है और अंतत: 10,000 किमी की ऊँचाई के बाद क्रमश: अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।
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