भ्रंश के कारण धरातल पर कई प्रकार की भू-आकृतियों का जन्म होता है -
- भ्रंश घाटी (Rift Valley)
- रैम्प घाटी (Ramp Valley)
- भ्रंशोत्थ/ब्लाॅक पर्वत (Block Mountain)
- हॉर्स्ट पर्वत (Horst Mountain)
- भ्रश घाटी (Rift valley) :- जब दो समान्तर भ्रंशों का मध्यवर्ती भाग नीचे की और धंस जाता है, तों इस प्रकार निर्मित घाटी भ्रंश घाटी कहलाती है। इसे जर्मन भाषा में ग्राबेन (GRABEN) कहा जाता है। सर्वप्रथम ग्रेगौरी नामक भू-गर्भशास्त्री ने अफ्रीका की महान भ्रंश घाटी को देखकर भ्रंश घाटी शब्द का प्रयोग किया था । यह भ्रंश घाटी उत्तरी सिरिया से आरंभ होकर जार्डन घाटी, आकाबा की खाड़ी, लाल सागर, अबीसीनिया और पूर्वी अफ्रीका होती हुई जाम्बेजी नदी तक लगभग 5000 किमी की लंबाई में फैली है । विश्व की अन्य प्रसिद्ध भ्रंश घाटियों में जर्मनी में वास्जेज व काले जंगल (Black forest) के मध्य राइन, अमेरिका में मृत घाटी, भारत में नर्मदा ताप्ती व ऊपरी दामोदर नदी आदि शामिल हैं । जॉर्डन का मृत सागर, अफ्रीका में न्यासा, टाँगानिका झीलें आदि भ्रश घाटियां ही हैं।
- रैम्प घाटी (Ramp valley) :- इस प्रकार का घाटी का निर्माण उस स्थिति मे होता है जब दो अंशों के बीच का स्तंभ यथास्थिति में रहे, परंतु सप्पीड़नात्मक बल के कारण किनारे के दोनों स्तम्भ ऊपर उठ जाए, जैसे असम की ब्रह्मपुत्र घाटी।
- भ्रंशोत्थ/ब्लॉक पर्वत (Block Mountain) :- इस प्रकार के पर्वतों का निर्माण तब होता है , जब दो भ्रंशों के बीच का स्तम्भ यथावत रहे, किंन्तु किनारे के स्तम्भ नीचे धँस जाए, तो ब्लॉक पर्वतों का निर्माण होता है । इनका ढाल एकदम खड़ा और शिखर समतल होता है । उदाहरण - भारत का सतपुडा पर्वत, जर्मनी का ब्लैक फॉरेस्ट एवं वास्जेज पर्वत, अमेरिका का सियरा नेवेदा, पाकिस्तान का साल्ट रेंज आदि। सियरा नेवेदा विश्व का सबसे विस्तृत ब्लॉक पर्वत है।
- हॉर्स्ट पर्वत (Horst Mountain) :- इस प्रकार के पर्वतों का निर्माण तब होता है जब दो भ्रंशों के किनारे के भाग यथावत रहे एवं बीच का भाग ऊपर उठ जाए, तो हाॅर्स्ट पर्वतों का निर्माण होता है। उदाहरण - जर्मनी के हॉर्स्ट पर्वत।
ध्यातव्य है कि भ्रंश घाटी , रैम्प घाटी , ब्लाॅक पर्वत एवं हॉर्स्ट पर्वत प्रायः आकृति के दृष्टिकोण से समान प्रतीत होते है, किन्तु भू-संचलन की दृष्टि से विपरीत गतियो के परिणाम होते है।
- बाह्यमण्डल (Exosphere) :- आयनमण्डल के ऊपर वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत बाह्यमण्डल कहलाती है, जिसकी ऊँचाई 640 से 1000 किमी तक मानी जाती है । यहां की वायु में हाइड्रोजन व हीलियम गैसों की प्रधानता होती है । अद्यतन शोधों के अनुसार यहां नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हीलियम, हाइड्रोजन की अलग-अलग परतें विद्यमान रहती हैं । इस मण्डल मे 1000 किमी के बाद वायुमण्डल अत्यन्त विरल हो जाता है और अंतत: 10,000 किमी की ऊँचाई के बाद क्रमश: अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।
आपको हमारी पोस्ट पसंद आई हो तो हमारी ऐसी ही ओर पोस्ट को देखिए और अपने सुझाव comments section में दीजिए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt please let me know