मध्यप्रदेश की मिट्टियां :-
भू - पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत , जो पौधों को उगने एवं बढ़ने के लिए जीवाश्म तथा खनिज प्रदान करती है , मृदा या मिट्टी कहलाती है , अर्थात - मृदा ह्यूमस से युक्त ढीला पदार्थ है , जो पौधों के लिए आद्रता तथा आहार प्रदान करता है।
मिट्टी के प्रकार :-
मध्यप्रदेश में मुख्यत: 5 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है -
- काली मिट्टी
- गहरी काली मिट्टी
- साधारण काली मिट्टी
- छिछली काली मिट्टी
3. जलोढ़ मिट्टी
4. कछारी मिट्टी
5. मिश्रित मिट्टी
- काली मिट्टी (47.6%) :-
- इसे रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- इसे स्थानीय लोग भर्री या कन्हर भी कहते है।
- यह मप्र में सर्वाधिक पाई जाने वाली मिट्टी है , जो मप्र के लगभग 47.6 % भाग में पाई जाती है।
- इसका निर्माण दक्कन ट्रैप की बेसाल्ट चट्टानों के क्षरण से हुआ है।
- इसके अंतर्गत मालवा के पठार , नर्मदा घाटी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रंखला आती है।
- इस मिट्टी के काले रंग का कारण लौह तत्व की अधिकता है।
- अधिकता - फेरस (लोहा) , मैग्नीशियम , पोटाश , एल्युमिनियम तथा चुने की अधिकता।
- कमी - नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा जैव पदार्थ (हृयुमस) की कमी।
- यह मिट्टी क्षारीय प्रकृति की होती है।
- इसे स्वतः कृष्य मृदा भी कहते है।
- प्रमुख ली जाने वाली फसलें - गेहूं , तिलहन , मूंगफली , चना , सोयाबीन , कपास आदि।
- इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता सर्वाधिक है।
- यह दूसरी सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है।
- यह प्रदेश में 3 स्वरूप में पाई जाती है -
1) गहरी काली मिट्टी (3.5%) :- यह मालवा के पठार , नर्मदा घाटी तथा सतपुड़ा के पश्चिमी भागो में पाई जाती है।
2) साधारण काली मिट्टी (37%) :- यह मिट्टी मालवा के पठार का संपूर्ण उत्तरी भाग तथा निमाड़ के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है।
3) छिछली काली मिट्टी (7.1%) :- इस मिट्टी का विस्तार प्रमुख रूप से सतपुड़ा पर्वत श्रंखला क्षेत्र में है।
2. लाल - पीली मिट्टी (37%) :-
- इसका विस्तार मप्र के पूर्वी भाग बालाघाट से बघेलखंड तक तथा बुंदेलखंड के कुछ भागों में है।
- विशेषकर मंडला , बालाघाट , सीधी , शहडोल जिलों में।
- इसका निर्माण मप्र में पाई जाने वाली विंध्य क्रम की चट्टानों तथा ग्रेनाइट व नीस की चट्टानों के अपरदन से हुआ है।
- इस मिट्टी का पीला रंग फेरिक ऑक्साइड तथा लाल रंग आयरन ऑक्साइड के कारण होता है।
- इसमें भी नाइट्रोजन , फास्फोरस , तथा ह्युमस की कमी पाई जाती है।
- यह चावल की खेती के लिए उपयुक्त है।
3. जलोढ़ मिट्टी :-
- यह सभी प्रकार की मिट्टी में सबसे उपजाऊ मिट्टी है।
- यह मुख्य रूप से मध्य भारत के पठारी भागो में पाई जाती है।
- इसे काप मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- इसका निर्माण चंबल नदी द्वारा निक्षेपित पदार्थ के साथ बुंदेलखंड की नीस चट्टानों के अपरदन से हुआ है।
- यह उदासीन प्रवृत्ति वाली मिट्टी है।
- इसमें गेहूं , ज्वार , सरसो आदि का उत्पादन होता है।
- जलोढ़ मिट्टी क्षेत्र में मृदा अपरदन की रेंगती हुई मृत्यु कहा जाता है।
4. कछारी मिट्टी :-
- यह नदियों द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी है जो बाढ़ के समय अपने अपवाह क्षेत्र में बिछा दी जाती है।
- इसका विस्तार चंबल तथा उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में है।
- भिंड , मुरैना , ग्वालियर में यह मिट्टी पाई जाती है।
- इसमें गेहूं , सरसो , गन्ना , आदि फसलों का उत्पादन होता है।
5. मिश्रित मिट्टी :-
- मप्र के अनेक क्षेत्रो में लाल , पीली तथा काली मिट्टी मिश्रित रूप में पाई जाती है।
- यह रीवा , पन्ना , सतना , टीकमगढ़ जिलों में यह मिट्टी पाई जाती है।
- इसकी उर्वरता शक्ति कम है तथा इसमें नाइट्रोजन , फास्फोरस , तथा ह्युमस की कमी पाई जाती है।
- इसमें मोटे अनाज , जैसे - ज्वार , बाजरा , मक्का आदि फसलें ली जाती है।
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